अहमदाबाद न्यूज डेस्क: गुजरात में सीबीआई की विशेष अदालत ने 52 वर्षीय धवल त्रिवेदी, जिसे 'लव गुरु' के नाम से जाना जाता है, को अंतिम सांस तक जेल में रहने की सजा सुनाई है। त्रिवेदी पर अपनी छात्रा से शादी का झांसा देकर बलात्कार करने और उसे गर्भवती करने का आरोप था। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि उसने छल और धोखे से गुरु-शिष्य संबंध की पवित्रता को ठेस पहुंचाई। इसके अलावा, न्यायाधीश डी.जी. राना ने त्रिवेदी पर 7 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया और जेल अधिकारियों को निर्देश दिया कि भविष्य में जब भी वह पैरोल के लिए आवेदन करे, इस सजा को ध्यान में रखा जाए।
त्रिवेदी का आपराधिक इतिहास काफी पुराना है। इससे पहले, उसे राजकोट जिले के पदधारी में दो नाबालिग छात्राओं को बहला-फुसलाकर भगाने और उनके साथ दुष्कर्म करने के मामले में आजीवन कारावास की सजा मिली थी। बावजूद इसके, वह छुट्टी पर जेल से बाहर आया और वापस आत्मसमर्पण करने के बजाय अपनी पहचान बदल ली। उसने खुद को धर्मेंद्र दवे के रूप में पेश किया और चोटिला में 'कौशल विकास स्वयंसेवक संघ' नाम से अंग्रेजी ट्यूशन क्लासेस शुरू कर दीं।
अगस्त 2018 में, त्रिवेदी ने एक नाबालिग छात्रा को दिल्ली ले जाकर उसका अपहरण कर लिया। इसके बाद वह भारत और नेपाल के कई स्थानों पर उसका शोषण करता रहा। जांच में सामने आया कि वह अलग-अलग जगहों पर सतनाम सिंह, मुखिया सिंह और सुरजीत सिंह के नामों का इस्तेमाल कर रहा था। पीड़िता ने झारखंड के जमशेदपुर के एमजीएम अस्पताल में झूठी पहचान के तहत एक बच्चे को जन्म दिया। हालांकि, मार्च 2020 में वह त्रिवेदी से अलग हो गई और तीन महीने बाद किसी तरह अपने घर लौटने में सफल रही।
गुजरात हाई कोर्ट के निर्देश पर सीबीआई ने इस मामले की जांच की और हिमाचल प्रदेश के बद्दी में त्रिवेदी को गिरफ्तार कर लिया। उसके खिलाफ अपहरण, बलात्कार और धोखाधड़ी के आरोपों में मुकदमा चला। अभियोजन पक्ष ने अदालत में 30 गवाहों के बयान दर्ज कराए और 69 दस्तावेजी सबूत पेश किए। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि यह मामला विश्वासघात, धोखे और एक मासूम लड़की की गरिमा के गंभीर उल्लंघन की कहानी को उजागर करता है।
अदालत ने यह भी कहा कि त्रिवेदी को शिक्षक के रूप में ज्ञान देने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, लेकिन उसने युवाओं की मासूमियत का फायदा उठाया। उसने शिक्षक की आड़ में छात्राओं के विश्वास को ठेस पहुंचाई और उनके साथ शारीरिक और मानसिक शोषण किया। अभियोजन पक्ष ने त्रिवेदी के लिए मौत की सजा की मांग की, यह तर्क देते हुए कि वह एक बार नहीं, बल्कि बार-बार अपराध करता है।
हालांकि, अदालत ने उसे फांसी देने के बजाय अंतिम सांस तक आजीवन कारावास की सजा सुनाई, ताकि भविष्य में उसे किसी भी प्रकार की रियायत न मिले। अदालत ने यह भी कहा कि आरोपी नौसिखिया नहीं था, बल्कि उसने पहले भी इसी तरह के अपराध किए थे और POCSO अधिनियम के तहत दोषी ठहराया गया था। ऐसे में उसके अपराध की गंभीरता को देखते हुए अदालत ने बिना किसी नरमी के अधिकतम सजा देना उचित समझा।