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आखिर क्यों मनाया जाता हैं बीटिंग द रिट्रीट और क्या कब हुई थी इस दिन की शुरूआत, जानें सबकुछ

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Posted On:Monday, January 29, 2024

बीटिंग द रिट्रीट भारत में गणतंत्र दिवस के अवसर पर हुए आयोजनों का आधिकारिक रूप से समापन की घोषणा है। इस कार्यक्रम में थल सेना, वायु सेना और नौसेना के बैंड पारंपरिक धुन के साथ मार्च करते हैं। यह सेना की बैरक वापसी का प्रतीक है। सभी महत्‍वपूर्ण सरकारी भवनों को 26 जनवरी से 29 जनवरी के बीच रोशनी से सुंदरतापूर्वक सजाया जाता है।

क्या है 'बीटिंग द रिट्रीट'

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'बीटिंग द रिट्रीट' सोलहवीं सदी के ब्रिटेन की परंपरा है। 'बीटिंग द रिट्रीट सेरेमनी' का असली नाम 'वॉच सेटिंग' है और सूर्य डूबने के समय यह समारोह होता है। 18 जून, 1690 में इंग्‍लैंड के राजा जेम्‍स टू ने अपनी सेनाओं को उनके ट्रूप्‍स के वापस आने पर ड्रम बजाने का आदेश दिया था। सन 1694 में विलियम थर्ड ने रेजीमेंट के कैप्‍टन को ट्रूप्‍स के वापस आने पर गलियों में ड्रम बजाकर उनका स्‍वागत करने का नया आदेश जारी किया। लेकिन भारत में यह समारोह गणतंत्र दिवस जलसों के आधिकारिक समापन का सूचक है। इस दिन शानदार ढंग से विदाई समारोह आयोजित होता है और इस रस्म में राष्ट्रपति विशेष तौर से पधारते हैं।

'बीटिंग द रिट्रीट' सदियों पुरानी सैन्य परंपरा है, जिसके तहत जब सेनाएं सूर्यास्त के बाद युद्ध मैदान से वापस लौटती थीं, तो एक वापसी बिगुल बजाया जाता था, जिसका मतलब होता था कि अब लड़ाई रोक दी जाए, तो सभी अपने हथियार रख देते थे और युद्ध स्थल से चले जाते थे। इसे ही 'बीटिंग द रिट्रीट' कहा जाता है। हर साल इसी तर्ज़ पर 26 जनवरी के चार दिवसीय कार्यक्रम के दौरान आख़िरी दिन विजय चौक पर ‘बीटिंग द रिट्रीट’ का आयोजन होता है। इस दौरान कई अलग-अलग बैंड अपनी प्रस्तुति देते हैं और बाद में रिट्रीट का बिगुल वादन होता है। जब सभी बैंड मास्टर राष्ट्रपति के पास जाकर अपने-अपने बैंड वापस ले जाने की अनुमति मांगते हैं। इस बिगुल के ज़रिए ये बताया जाता है कि कार्यक्रम समाप्त हो गया है।

2022 का समारोह

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साल 1950 से लगातार इस कार्यक्रम के समापन में 'अबाइड विद मी' (Abide With Me) गाने की धुन बजाई जा रही है, लेकिन साल 2020 में एक ख़बर में कहा गया कि अब 'बीटिंग द रिट्रीट' सेरेमनी में 'अबाइड विद मी' गाने की धुन नहीं बजाई जाएगी और इसकी जगह 'वंदे मातरम' बजेगा। हालांकि, तब ऐसा नहीं हुआ और 2020 और 2021 में इसे ही बजाया गया।

गाने का इतिहास

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस गाने को स्कॉटलैंड के एंगलिकन मिनिस्टर हेनरी फ़्रांसिस ने लिखा था। सादगी और दुख में गाए जाने वाले इस गाने को 'हिम' कहा जाता है, जिसे ज़्यादातर चर्च में गाया जाता था। इसे अक्सर इंटरनेशनल म्यूज़िक कपोंज़र विलियम हेनरी मोंक की ट्यून पर गाया जाता है। इसीलिए इस गाने को 'बीटिंग द रिट्रीट' में सेना के बैंड के द्वारा बड़े ही सादगी से बजाया जाता है। हेनरी फ़्रांसिस ने इस गाने को 1820 में लिखा था, जब वो अपने उस दोस्त से मिलकर जो अपनी अंतिम सांस ले रहा था। इस दुखभरे गाने में उन्होंने अपने दर्द को बताया था और 1847 में अपने मरने तक ये गाना अपने पास ही रखा था। पहली बार ये गाना हेनरी फ़्रांसिस के अंतिम संस्कार के मौके पर ही गाया गया था। ये गाना ईसाई धर्म में काफ़ी लोकप्रिय है। इस गाने को टाइटैनिक के डूबने पर और पहले विश्व युद्ध के दौरान कई बार गाया गया था। इसे भारतीय सेना में नहीं, बल्कि कई देशों की सेना में शहीदों की याद में गाया जाता है।

भारत से रिश्ता

कहा जाता है कि महात्मा गांधी का 'वैष्णव जन तो' और 'रघुपति राघव राजा राम' के साथ-साथ 'अबाइड विद मी' गाने की धुन भी उनके फ़ेवरेट गानों में से एक थी। इस धुन को गांधीजी ने सबसे पहले मैसूर पैलेस बैंड से सुना था। तब से माना जाता है कि महात्मा गांधी की वजह से भी 'बीटिंग द रिट्रीट' में इस धुन को गाया जाता है।
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समारोह का आयोजन

हर वर्ष 29 जनवरी की शाम को अर्थात् गणतंत्र दिवस के तीसरे दिन 'बीटिंग द रिट्रीट' का आयोजन किया जाता है। यह आयोजन तीन सेनाओं के एक साथ मिलकर सामूहिक बैंड वादन से आरंभ होता है जो लोकप्रिय मार्चिंग धुनें बजाते हैं। ड्रमर भी एकल प्रदर्शन (जिसे ड्रमर्स कॉल कहते हैं) करते हैं। ड्रमर्स द्वारा 'एबाइडिड विद मी' (यह महात्मा गाँधी की प्रिय धुनों में से एक कही जाती है) बजाई जाती है और ट्युबुलर घंटियों द्वारा चाइम्‍स बजाई जाती हैं, जो काफ़ी दूरी पर रखी होती हैं और इससे एक मनमोहक दृश्‍य बनता है। इसके बाद रिट्रीट का बिगुल वादन होता है, जब तीनों सेना के बैंड मास्‍टर राष्ट्रपति के समीप जाते हैं और बैंड वापिस ले जाने की अनुमति मांगते हैं। तब सूचित किया जाता है कि 'समापन समारोह' पूरा हो गया है। बैंड मार्च वापस जाते समय लोकप्रिय धुन सारे जहाँ से अच्‍छा बजाते हैं। ठीक शाम 6 बजे 'बगलर्स रिट्रीट' की धुन बजाते हैं और राष्‍ट्रीय ध्‍वज को उतार लिया जाता है तथा राष्‍ट्रगान गाया जाता है और इस प्रकार गणतंत्र दिवस के आयोजन का औपचारिक समापन होता हैं।

बीटिंग द रिट्रीट का प्रारम्भ

भारत में बीटिंग द रिट्रीट सेरेमनी की शुरुआत सन 1950 से हुई। उस समय भारतीय सेना के मेजर रॉबर्ट्स ने इस सेरेमनी को सेनाओं के बैंड्स के डिस्‍प्‍ले के साथ पूरा किया। इस डिस्‍प्‍ले में मिलिट्री बैंड्स, पाइप्‍स और ड्रम बैंड्स, बगर्ल्‍स और ट्रंपेटर्स के साथ आर्मी की विभिन्‍न रेजीमेंट्स और नौसेना और वायु सेना के बैंड्स भी शामिल थे। इस सेरेमनी की शुरुआत तीनों सेनाओं के बैंड्स के मार्च के साथ होती है और इस दौरान वह 'कर्नल बोगे मार्च', 'संस ऑफ द ब्रेव' और 'कदम-कदम बढ़ाए जा' जैसी धुनों को बजाते हैं। सेरेमनी के दौरान भारतीय सेना का बैंड पारंपरिक स्‍कॉटिश धुनों और भारतीय धुनों, जैसे- 'गुरखा ब्रिगेड,' नीर की 'सागर सम्राट' और 'चांदनी' जैसी धुनों को बजाता है। आखिर में सेना, वायु सेना और नौसेना के बैंड्स एक साथ परफॉर्म करते हैं। आजकल कॉमनवेल्‍थ देशों की सेनाएं इस समारोह को परंपरा के तौर पर निभाती हैं। इस समारोह को कुछ लोग नए बैंड मेंबर्स के लिए उनका कौशल साबित करने वाला टेस्‍ट मानते हैं तो कुछ इसे कठिन ड्रिल्‍स के अभ्‍यास का तरीका भी मानते हैं।

दो बार रद्द हुआ कार्यक्रम

वर्ष 1950 में भारत के गणतंत्र बनने के बाद 'बीटिंग द रिट्रीट' कार्यक्रम को अब तक दो बार रद्द करना पड़ा है, 27 जनवरी 2009 को भूतपूर्व राष्ट्रपति रामस्वामी वेंकटरमण का लंबी बीमारी के बाद आर्मी रिसर्च एंड रेफरल अस्पताल में निधन हो जाने के कारण बीटिंग द रिट्रीट कार्यक्रम रद्द कर दिया गया। वह भारत के आठवें राष्ट्रपति थे और उनका कार्यकाल 1987 से 1992 तक रहा। इससे पहले 26 जनवरी 2001 को गुजरात में आए भूकंप के कारण बीटिंग द रिट्रीट कार्यक्रम को रद्द कर दिया गया था।

बीटिंग रिट्रीट समारोह 2014

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29 जनवरी को दिल्ली में रंगारंग बीटिंग रिट्रीट समारोह के साथ गणतंत्र दिवस समारोह का समापन हो गया। बुधवार शाम विजयचौक पर चले संगीतमय समारोह में तीनों भारतीय सेनाओं के बैंडों ने एकल और सामूहिक प्रस्तुति दीं। समारोह की ख़ासियत वे नई धुनें रहीं, जिन्हें इस वर्ष ख़ासतौर पर तैयार किया गया था। इस पूरे कार्यक्रम में एक और ख़ास बात रहीं कि बीस साल बाद राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 16वीं सदी से चली आ रही एक परंपरा को पुनजीर्वित करते हुए आज गणतंत्र दिवस की समापन परेड 'बीटिंग रिट्रीट' के लिए घोड़े बग्गी पर सवार होकर राजपथ पर सैन्य बलों की टुकड़ियों को गाजे बाजे के साथ बैरकों में वापस भेजा। इस मौके पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के साथ उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी, प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह, रक्षामंत्री ए. के. एंटनी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जैसे कई गणमान्य लोगों ने समारोह का आनंद लिया।

समारोह की कई प्रस्तुतियां लोगों के आकर्षण का केंद्र बनीं। इस समारोह की शुरुआत 'जहां डाल-डाल पर सोने की चिड़िया' धुन से हुई। इसे मेजर महेंद्र दास ने तैयार किया था। फिर सूबेदार जामन सिंह द्वारा रचित धुन 'हे कांचा' पर पाइप और ड्रम को बजाया गया। वहीं नायब सूबेदार दीनानाथ द्वारा तैयार की गई धुन 'पाए जांदे पाले' को पहली बार पेश किया गया। महात्मा गांधी की पसंदीदा धुन 'अबाइड विद मी' को जब सेना के बैंड ने प्रस्तुत किया, तो विजय चौक पर समारोह के साक्षी बनने आए हजारों लोग तालियां बजाने को मजबूर हो गए। इस साल बीटिंग रिट्रीट में 14 मिलिट्री बैंड और आर्मी की विभिन्न रेजीमेंट के पाइप और ड्रम ने भाग लिया। इसके अलावा भारतीय नौसेना और वायु सेना के मिलिट्री बैंडों ने भी समारोह में हिस्सा लिया। वहीं समारोह के समापन के समय राष्ट्रपति भवन, नॉर्थ व साउथ ब्लॉक के अलावा संसद भवन पर की गई लाइटिंग का नज़ारा देख सभी लोग दंग रह गए।

एशियन गेम्‍स समारोह

इसी तरह का समारोह वर्ष 1982 में देश में संपन्‍न हुए एशियन गेम्‍स के समय प्रस्तुत किया गया था। भारतीय सेना के सेवानिवृत्त संगीत निर्देशक स्‍वर्गीय हैराल्‍ड जोसेफ, भारतीय नौसेना के जेरोमा रॉड्रिग्‍स और भारतीय वायु सेना के एमएस नीर को इस समारोह का श्रेय दिया जाता है।

बाघा बॉर्डर

भारत और पाकिस्तान के अमृतसर स्थित 'बाघा बॉर्डर' पर इस समारोह की शुरुआत वर्ष 1959 में की गई थी। समारोह को प्रतिदिन सूर्य ढलने से कुछ घंटे पहले प्रस्तुत किया जाता है। बाघा बॉर्डर पर होने वाले इस समारोह में बीएसएफ और पाकिस्‍तान रेंजर्स के जवान हिस्‍सा लेते हैं।


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