अहमदाबाद न्यूज डेस्क: गुजरात उच्च न्यायालय ने एक पति की याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उसने अपनी गर्भवती पत्नी की कस्टडी उसकी 'लेस्बियन' मित्र से लेने की मांग की थी। न्यायालय ने पाया कि पत्नी अपनी मर्जी से पति के पास वापस लौटने के लिए तैयार नहीं थी। चांदखेड़ा निवासी व्यक्ति ने पिछले सप्ताह बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की थी, जिसके बाद पुलिस ने महिला को अदालत में पेश किया। अदालत के समक्ष पूछताछ के दौरान, महिला ने अपने पति के पास वापस जाने से इनकार करते हुए कहा कि वह अपनी महिला मित्र के साथ रहना चाहती है।
उच्च न्यायालय ने महिला की इच्छा का सम्मान करते हुए उसे अपनी महिला मित्र के साथ रहने की अनुमति दी। न्यायमूर्ति आई जे वोरा और न्यायमूर्ति एस वी पिंटो की पीठ ने कहा कि महिला ने अदालत में यह बयान दिया कि वह मानसिक और शारीरिक रूप से परेशान हो रही थी, जिसके कारण उसने स्वेच्छा से अपने घर को छोड़ने का निर्णय लिया। महिला ने यह भी बताया कि उसका पति उसे परेशान करता था, इसलिए उसने अपने पति के साथ रहने का विचार छोड़ा और महिला मित्र के पास चली गई।
महिला की कस्टडी के मामले में अदालत ने यह भी कहा कि पत्नी की महिला मित्र ने उसे किसी प्रकार से बंदी बना कर नहीं रखा है, इसलिए इस पहलू पर भी याचिका खारिज की गई। इस मामले में, पति ने यह आरोप लगाया था कि उसकी पत्नी सात महीने की गर्भवती है और वह अपने समलैंगिक साथी के साथ भाग गई है। उसने दावा किया कि पत्नी अक्टूबर में घर से चली गई थी और अब तक वापस नहीं आई।
इस आरोप के बाद, चांदखेड़ा पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई गई थी, लेकिन महिला का पता नहीं चल पाया था। इसके बाद, पति ने न्यायालय का रुख किया और गुजरात उच्च न्यायालय ने पुलिस को महिला को 23 दिसंबर तक अदालत में पेश करने का आदेश दिया था। पुलिस जांच में यह भी सामने आया कि महिला का पहले से ही समलैंगिक संबंध था, जो दोनों परिवारों को शादी से पहले ही पता था।
न्यायालय ने महिला की इच्छा और परिस्थितियों का संज्ञान लेते हुए पति की याचिका खारिज कर दी। यह मामला न केवल वैवाहिक संबंधों और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़ा हुआ था, बल्कि यह समाज में समलैंगिक संबंधों को लेकर बढ़ती जागरूकता और मान्यता का भी प्रतीक था।