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Posted On:Friday, May 16, 2025

रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे भीषण युद्ध के बीच एक बड़ी और आशाजनक खबर सामने आई है। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की ने घोषणा की है कि यूक्रेन का एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल रूस के साथ तुर्की के इस्तांबुल शहर में होने वाली वार्ता में भाग लेगा। इस वार्ता का प्रमुख उद्देश्य दोनों देशों के बीच युद्धविराम की स्थिति बनाना है, जिससे युद्ध को शांति के रास्ते पर लाया जा सके।

इस वार्ता में यूक्रेन का प्रतिनिधित्व रक्षा मंत्री रुस्तम उमरोव करेंगे। इसके साथ ही, इस प्रतिनिधिमंडल में सैन्य और खुफिया एजेंसियों के वरिष्ठ अधिकारी भी शामिल होंगे। राष्ट्रपति जेलेंस्की ने खुद गुरुवार को इसकी पुष्टि की और इसे शांति की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया।


तुर्की की भूमिका

तुर्की इस वार्ता में मध्यस्थ के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। जर्मन न्यूज एजेंसी DPA ने 'DW न्यूज' की रिपोर्ट के हवाले से बताया कि तुर्की का विदेश मंत्रालय रूस और यूक्रेन के राजनयिकों के बीच इस वार्ता की मेजबानी कर रहा है। तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन लंबे समय से दोनों पक्षों के बीच संवाद और शांति वार्ता की वकालत करते आए हैं। उनके प्रयासों से यह वार्ता अब संभव हो पाई है।

तुर्की की भौगोलिक स्थिति, राजनीतिक संतुलन और कूटनीतिक छवि ने इसे इस संघर्ष में एक विश्वसनीय मध्यस्थ बनाया है। तुर्की रूस के साथ मजबूत सैन्य और व्यापारिक संबंध रखता है, वहीं नाटो का सदस्य होने के कारण पश्चिमी देशों के करीब भी है। इस वजह से तुर्की को दोनों पक्षों के लिए एक भरोसेमंद संवाददाता माना जाता है।


जेलेंस्की ने X (पूर्व ट्विटर) पर क्या कहा?

राष्ट्रपति जेलेंस्की ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर इस वार्ता के महत्व और तुर्की के समर्थन को लेकर भावनाएं साझा कीं। उन्होंने तुर्की के राष्ट्रपति और उनकी टीम के प्रति आभार जताया। जेलेंस्की ने लिखा:

"मैं यूक्रेन की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता के समर्थन के लिए राष्ट्रपति @RTErdogan, उनकी टीम और तुर्किये के लोगों को धन्यवाद देता हूं।"

उन्होंने यह भी कहा कि तुर्की के राष्ट्रपति ने स्पष्ट रूप से यह पुष्टि की है कि क्रीमिया यूक्रेन का हिस्सा है, जो यूक्रेन की एक प्रमुख मांग रही है। यह बयान तुर्की की इस विवादित क्षेत्र को लेकर ठोस समर्थन को दर्शाता है।

यूक्रेनी प्रतिनिधिमंडल में उच्च पदस्थ अधिकारी शामिल हैं, जो इस वार्ता को रणनीतिक दृष्टिकोण से बेहद गंभीरता से ले रहे हैं। इस प्रतिनिधिमंडल में शामिल हैं:

  • विदेश मंत्री

  • राष्ट्रपति कार्यालय के प्रमुख

  • रक्षा मंत्री

  • जनरल स्टाफ के प्रमुख

  • यूक्रेन की सुरक्षा सेवा के प्रमुख

  • प्रमुख खुफिया एजेंसियों के प्रतिनिधि

इससे यह स्पष्ट होता है कि यूक्रेन इस वार्ता को केवल एक औपचारिकता नहीं, बल्कि एक रणनीतिक मिशन मान रहा है।


रूस की मंशा पर उठ रहे सवाल

हालांकि, राष्ट्रपति जेलेंस्की ने रूस की इस वार्ता को लेकर मंशा पर संदेह जताया है। उनका मानना है कि रूस इस प्रक्रिया को गंभीरता से नहीं ले रहा क्योंकि वह युद्ध को खत्म करने के पक्ष में नहीं है। जेलेंस्की का कहना है कि रूस इस वार्ता का केवल फायदा उठाने और समय निकालने के लिए सहमति जताएगा ताकि वह अपनी रणनीतिक स्थिति मजबूत कर सके।

इसके बावजूद, यूक्रेन इस वार्ता को अमेरिका और तुर्की जैसे शक्तिशाली सहयोगियों के समर्थन से आगे बढ़ा रहा है। जेलेंस्की ने अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन का भी नाम लेकर कहा कि इन नेताओं के सम्मान में यूक्रेन वार्ता में शामिल हो रहा है।


वार्ता का मुख्य एजेंडा: युद्धविराम

इस वार्ता का सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है युद्धविराम। जेलेंस्की ने इसे अपने प्रतिनिधिमंडल का प्राथमिक जनादेश बताया है। युद्ध विराम के बिना किसी स्थायी शांति की संभावना कम ही है। पूर्वी यूक्रेन के कई इलाकों में लगातार संघर्ष जारी है, जबकि रूस की ओर से मिसाइल हमले भी हो रहे हैं। ऐसी स्थिति में युद्धविराम लाखों नागरिकों की जान बचा सकता है और शांति की ओर पहला बड़ा कदम साबित हो सकता है।


निष्कर्ष: आशा या असफलता की शुरुआत?

रूस-यूक्रेन युद्ध अब दो साल से अधिक समय से जारी है, जिसमें हजारों लोग मारे जा चुके हैं और करोड़ों विस्थापित हुए हैं। ऐसे में इस्तांबुल में होने वाली वार्ता एक उम्मीद की किरण हो सकती है। लेकिन राष्ट्रपति जेलेंस्की द्वारा जताया गया संशय यह दर्शाता है कि विश्वास की खाई अभी भी बहुत गहरी है।

क्या यह वार्ता वास्तव में युद्ध को समाप्त कर पाएगी? क्या रूस युद्धविराम के लिए तैयार है या यह केवल एक राजनयिक नाटक साबित होगा? आने वाले हफ्तों में इस पहल के परिणाम सामने आएंगे।

फिलहाल, विश्व समुदाय की निगाहें इस्तांबुल की इस वार्ता पर टिकी हैं, जहां एक तरफ युद्ध की विभीषिका खत्म करने की उम्मीद है, तो दूसरी तरफ कूटनीतिक जटिलताओं की भी भरमार है।


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