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Israel Iran War: ईरान-इजरायल युद्ध का भारत पर क्या असर पड़ेगा? 2 दिन से दोनों देशों में चल रही जंग

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Posted On:Saturday, June 14, 2025

ईरान और इजरायल के बीच पुरानी दुश्मनी अब खुली जंग का रूप ले चुकी है। पिछले दो दिनों से दोनों देशों के बीच मिसाइल और ड्रोन हमले हो रहे हैं। इजरायल ने साफ कहा है कि वह ईरान को परमाणु हथियार बनाने से रोकना चाहता है। हालांकि इस बार अमेरिका ने दावा किया है कि वह इस संघर्ष में सीधे नहीं जुड़ेगा, लेकिन दुनिया जानती है कि अमेरिका और इजरायल के बीच गहरा गठजोड़ है। इस पूरे तनाव से भारत सहित विश्व की कई अर्थव्यवस्थाओं पर गहरा असर पड़ सकता है। आइए जानते हैं इस युद्ध का भारत सहित वैश्विक प्रभाव।


1. भारत और दोनों देशों के रिश्ते

भारत के लिए ईरान और इजरायल दोनों महत्वपूर्ण साझेदार हैं। ईरान भारत का ऊर्जा स्रोत है, वहीं इजरायल कृषि, रक्षा, टेक्नोलॉजी जैसे क्षेत्रों में भारत का अहम सहयोगी है। ईरान से भारत को तेल, पेट्रोलियम पदार्थ, खजूर, बादाम जैसे कई उत्पाद मिलते हैं। वहीं भारत ईरान को कृषि उत्पाद, घी, प्याज, लहसुन, डिब्बाबंद सब्जियां आदि निर्यात करता है।

इजरायल के साथ भारत के रक्षा सहयोग बढ़ते जा रहे हैं। दोनों देशों के बीच तकनीकी और कृषि क्षेत्रों में मजबूत व्यापारिक रिश्ते हैं। इसलिए इस जंग से भारत की डिप्लोमैटिक और आर्थिक स्थिति पर असर पड़ना तय है।


2. तेल की सप्लाई और कीमतों पर असर

ईरान से आने वाले कच्चे तेल की सप्लाई युद्ध की वजह से बाधित हो सकती है। अरब सागर और फारस की खाड़ी के रास्ते तेल की आपूर्ति में खलल आने पर वैश्विक बाजार में तेल की कीमतें बढ़ जाएंगी। भारत की अर्थव्यवस्था पर इसका भारी प्रभाव पड़ेगा क्योंकि भारत ऊर्जा की भारी मात्रा में आयात करता है।

तेल के दाम बढ़ने से ईंधन के दाम बढ़ेंगे, जिसका असर ट्रांसपोर्टेशन, उद्योग, खाद्य पदार्थों की कीमतों पर होगा। आम जनता को भी महंगाई की मार झेलनी पड़ेगी।


3. आयात-निर्यात व्यापार में बाधाएं

भारत ईरान से पेट्रोलियम उत्पाद और अन्य वस्तुओं का आयात करता है, वहीं कृषि व उपभोक्ता वस्तुओं का निर्यात करता है। युद्ध के कारण बंदरगाहों और समुद्री मार्गों पर अस्थिरता बढ़ेगी, जिससे समुद्री व्यापार प्रभावित होगा। जहाजी बेड़े खतरों से बचने के लिए लंबा और महंगा मार्ग अपनाएंगे, जिससे समय और लागत दोनों बढ़ेंगी।

इसके अलावा, इजरायल के साथ भी व्यापारिक लेन-देन प्रभावित हो सकता है क्योंकि दोनों देशों के बीच तनाव और सुरक्षा की स्थिति खराब रहेगी।


4. विमान सेवाओं और एयरस्पेस की समस्या

युद्ध के दौरान सुरक्षा कारणों से ईरान और इजरायल के आस-पास के एयरस्पेस बंद हो सकते हैं। इससे हवाई मार्गों को रूट बदलना पड़ेगा। लंबा रूट अपनाने से विमान ज्यादा ईंधन खर्च करेंगे, जिससे हवाई यात्रा महंगी हो जाएगी।

भारत से मध्य पूर्व और यूरोप के लिए उड़ानें प्रभावित हो सकती हैं, जिससे यात्री असुविधा का सामना करेंगे।


5. प्रवासियों और भारतीय नागरिकों की सुरक्षा

ईरान और इजरायल में हजारों भारतीय काम करते हैं। युद्ध के कारण वहां फंसे भारतीयों की जान-माल को खतरा होगा। भारत सरकार को अपने नागरिकों को सुरक्षित निकालने के लिए विशेष प्रयास करने पड़ सकते हैं।

इसके अलावा, क्षेत्र में अस्थिरता बढ़ने से प्रवासी भारतीयों की आर्थिक स्थिति भी प्रभावित हो सकती है।


6. भारत की राजनैतिक चुनौतियां और न्यूट्रलिटी

भारत दोनों देशों के साथ अच्छे रिश्ते बनाए रखना चाहता है। इसलिए भारत ने अभी तक इस युद्ध में न्यूट्रल रहने और किसी भी पक्ष का समर्थन न करने का फैसला किया है। भारत की नीति यह रहेगी कि वह दोनों देशों के बीच विवाद को बातचीत से हल करने की पैरवी करेगा।

हालांकि, यदि युद्ध लंबा चला और क्षेत्रीय तनाव बढ़ा, तो भारत को अपने राजनैतिक फैसलों में भी बदलाव करने पड़ सकते हैं।


7. आर्थिक नुकसान और वैश्विक बाजार पर असर

मध्य पूर्व में तनाव बढ़ने से वैश्विक बाजार में अनिश्चितता बढ़ेगी। तेल के दाम बढ़ने से भारत की महंगाई बढ़ेगी, जबकि निवेशकों में डर पैदा होगा। व्यापार में बाधा से आर्थिक विकास दर पर नकारात्मक असर पड़ेगा।

इसके अलावा, युद्ध की वजह से वैश्विक पूंजी का प्रवाह प्रभावित होगा और बाजारों में अस्थिरता आएगी।


8. क्या युद्ध लंबा चलेगा?

इजरायल और ईरान के बीच तनाव पिछले कई वर्षों से था, लेकिन अब यह खुली जंग का रूप ले चुका है। दोनों देशों की सैन्य ताकत और रणनीति इस युद्ध को लंबा और खतरनाक बना सकती है। इस बीच भारत सहित पूरे विश्व को इस संघर्ष के बढ़ते प्रभावों से सावधान रहना होगा।


निष्कर्ष

ईरान-इजरायल युद्ध केवल दो देशों का विवाद नहीं, बल्कि यह वैश्विक सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता के लिए एक बड़ा खतरा बन गया है। भारत की अर्थव्यवस्था, ऊर्जा सुरक्षा, व्यापार और नागरिक सुरक्षा इस युद्ध से प्रभावित होंगे। इसलिए भारत को अपने हितों को बचाते हुए सावधानी से कूटनीति करनी होगी और अपने नागरिकों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी होगी।

विश्व को भी चाहिए कि वे इस संघर्ष को बढ़ने से रोकने के लिए शांतिपूर्ण समाधान तलाशें ताकि क्षेत्रीय और वैश्विक शांति बनी रहे


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