अहमदाबाद न्यूज डेस्क: उत्तराखंड में जोशीमठ और उत्तरकाशी में जमीन धंसने की घटनाओं ने पहले ही चेतावनी दी थी, लेकिन अब यही संकट देश के मैदानी हिस्सों में भी दिखाई देने लगा है। गुजरात में हाल ही में किए गए शोध में अहमदाबाद, सूरत और कच्छ जैसे शहरों में जमीन धीरे-धीरे धंसने की गंभीर स्थिति सामने आई है।
शोध के अनुसार, अहमदाबाद में 2017 से 2020 के बीच तीन बड़े सब्सिडेंस जोन पहचाने गए, जहां जमीन सालाना 2.5 सेंटीमीटर तक धंसी। पिपलाज इलाके में 2014 से 2020 के बीच सालाना 4.2 सेंटीमीटर और 2020–2023 में बापल और वटवा इलाके में 3.5 सेंटीमीटर की दर से धंसाव हुआ। सूरत में वार्षिक धंसाव 0.01 से 6.7 सेंटीमीटर तक दर्ज हुआ, जिसमें करंज क्षेत्र सबसे प्रभावित रहा। कच्छ में औसत धंसाव 4.3 मिलीमीटर प्रति वर्ष है, जबकि कुछ इलाकों में यह 2.2 सेंटीमीटर तक पहुंच गया।
शोध में भूजल का अत्यधिक दोहन मुख्य कारण बताया गया है। ग्राउंडवॉटर वाले परतों में दबाव घटने से मिट्टी सघन होकर बैठती है, जिससे भवनों में दरारें, छत और दीवारों में क्रैक जैसी समस्याएं सामने आती हैं। अध्ययन में InSAR तकनीक का इस्तेमाल किया गया, जो उपग्रह की मदद से मिलीमीटर स्तर की सटीकता से जमीन के धंसाव को मापती है।
विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि अगर इस खतरे को गंभीरता से नहीं लिया गया तो शहरी बुनियादी ढांचा, जल प्रणालियां, कृषि और लाखों लोगों की सुरक्षा प्रभावित हो सकती है। तेज़ी से बढ़ते शहरीकरण और भूजल का अंधाधुंध दोहन इसे और गंभीर बना रहा है।