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राष्ट्रपति और राज्यपालों की बिलों पर देरी का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में, संविधान पीठ ने उठाए सवाल, जानिए पूरा मामला

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Posted On:Tuesday, August 19, 2025

मुंबई, 19 अगस्त, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को राष्ट्रपति और राज्यपालों के बिलों पर हस्ताक्षर की समयसीमा तय करने संबंधी याचिका पर सुनवाई हुई। सीजेआई बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने कहा कि फिलहाल अदालत सलाहकारी अधिकार क्षेत्र में है और इस स्तर पर यह कोई अंतिम आदेश नहीं, बल्कि राष्ट्रपति द्वारा मांगी गई राय पर विचार है। अदालत ने सवाल उठाया कि जब खुद राष्ट्रपति ने इस मामले पर राय मांगी है, तो इसमें दिक्कत कहां है और क्या सचमुच याचिकाकर्ता इसे चुनौती देना चाहते हैं।

केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि संविधान सभा ने जानबूझकर राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए कोई समयसीमा तय नहीं की थी। उनका कहना था कि अदालत को संविधान को फिर से लिखने जैसा कदम नहीं उठाना चाहिए। वहीं, अदालत ने याद दिलाया कि तमिलनाडु मामले में हस्तक्षेप इसलिए करना पड़ा क्योंकि गवर्नर ने लंबे समय तक बिल रोके रखे थे और इससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया प्रभावित हुई थी। केरल और तमिलनाडु सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील केके वेणुगोपाल और अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दी कि राष्ट्रपति द्वारा पूछे गए ज्यादातर सवालों के जवाब पहले ही तमिलनाडु वाले फैसले में मिल चुके हैं। उनका तर्क था कि जब तक पिछला फैसला पलटा न जाए, अदालत उससे बंधी रहेगी। सिंघवी ने कहा कि मौजूदा सुनवाई तमिलनाडु मामले को भी अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित कर सकती है।

बहस के दौरान सॉलिसिटर जनरल मेहता ने कहा कि राष्ट्रपति को लगा है कि संविधान के कामकाज में टकराव की स्थिति बन रही है, इसलिए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी। उनका कहना था कि अनुच्छेद 143 अदालत को यह शक्ति देता है कि वह राष्ट्रपति के सवालों पर विचार करे, चाहे इस पर पहले कोई फैसला आया हो या नहीं। वहीं, अदालत ने टिप्पणी की कि कई मामलों में राज्यपालों ने जानबूझकर बिलों पर कार्रवाई में देरी की है और ऐसी परिस्थितियों में न्यायपालिका को दखल देना पड़ा है। यह पूरा विवाद तमिलनाडु के उस मामले से शुरू हुआ था, जब गवर्नर ने कई बिलों को रोककर रखा था। सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को आदेश दिया था कि राज्यपाल के पास कोई वीटो पावर नहीं है और अगर वे बिल राष्ट्रपति को भेजते हैं तो राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर निर्णय लेना होगा। इसी फैसले के बाद राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से राय मांगते हुए 14 सवाल भेजे थे, जिन पर अब संविधान पीठ विचार कर रही है।


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