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सुप्रीम कोर्ट ने UAPA पर सुनवाई से किया इनकार, जानिए पूरा मामला

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Posted On:Tuesday, February 4, 2025

मुंबई, 04 फरवरी, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को UAPA प्रावधानों में संशोधन के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया। CJI संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने दिल्ली हाईकोर्ट से मामले की सुनवाई करने को कहा है। बेंच ने कहा, सुनवाई के लिए हम पहले कोर्ट (उदाहरण) नहीं हो सकते हैं। कई परेशानियां सामने आती हैं। कभी-कभी मुद्दे आपके पक्ष (याचिकाकर्ता) द्वारा छोड़े जाते हैं, कभी-कभी उनके पक्ष (संघ) द्वारा छोड़े जाते हैं। फिर हमें बड़ी बेंच को रेफर करना पड़ता है। पहले हाईकोर्ट इस पर निर्णय ले। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 6 सितंबर 2019 को गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) में 2019 के संशोधन की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर केंद्र को नोटिस जारी किया था। पीठ ने कहा था देश के दूसरे हाईकोर्ट भी UAPA संशोधनों के खिलाफ नई याचिकाओं की जांच कर सकते हैं। अदालत ने एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (APCR) के सजल जैन और अमिताभ पांडे की दायर याचिकाओं पर सुनवाई की। दरअसल, UAPA के प्रावधानों में संशोधन के तहत राज्य सरकार को किसी भी व्यक्ति को आतंकवादी घोषित करने और उसकी संपत्ति जब्त करने का अधिकार दिया गया है।

CJI ने कहा, ऐसे मामलों में अक्सर कॉम्प्लेक्स लीगल इशू सामने आते हैं। हाईकोर्ट के लिए इसकी जांच करना सही होगा। जिसके बाद, याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से मामले की सुनवाई का आग्रह किया। साथ ही कहा कि उसने 5 साल पहले नोटिस जारी किया था। याचिकाओं का निपटारा करने के बजाय मामले को दिल्ली हाईकोर्ट में ट्रांसफर किया जा सकता है, क्योंकि याचिकाकर्ताओं के लिए इसमें कई कठिनाइयां हैं, जिनमें से कई सेवानिवृत्त नौकरशाह हैं। हमारे मामले में हम सभी रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट्स हैं। हमने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है और हमें लिए कई हाईकोर्ट में प्रतिनिधित्व पाना असुविधाजनक रहेगा। फिर, CJI ने दलील स्वीकारते हुए कहा, याचिकाओं को दिल्ली हाईकोर्ट में लिस्ट किया जाएगा। जिस पर, याचिकाकर्ता ने कहा, संशोधित प्रावधान नागरिकों के मौलिक अधिकारों जैसे समानता का अधिकार, बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अलावा जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करते हैं। UAPA 2019 आतंकवाद पर अंकुश लगाने की आड़ में सरकार को असहमति के अधिकार पर इनडायरेक्ट रिस्ट्रिक्शन लगाने का अधिकार देता है। जो विकासशील लोकतांत्रिक समाज के लिए खतरनाक है।


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