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भारत का एक छोटा सा कदम सुखा सकता है पाकिस्तान का गला! रिपोर्ट में दी गई चेतावनी

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Posted On:Saturday, November 1, 2025

ऑस्ट्रेलिया के थिंक-टैंक इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक्स एंड पीस (IEP) की 'इकोलॉजिकल थ्रेट रिपोर्ट 2025' ने चेतावनी दी है कि पाकिस्तान गंभीर जल संकट के खतरे का सामना कर रहा है. रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान की लगभग 80% कृषि पूरी तरह से सिंधु नदी बेसिन के पानी पर निर्भर है, और भारत के पास तकनीकी क्षमता के भीतर रहते हुए नदी के प्रवाह में बदलाव करने की रणनीतिक बढ़त है, जिसका बड़ा असर पाकिस्तान पर पड़ेगा.

सिंधु जल संधि निलंबित होने के बाद बढ़ा खतरा

यह रिपोर्ट ऐसे समय में आई है जब भारत ने अप्रैल 2025 में हुए पहलगाम आतंकी हमले के बाद 1960 की सिंधु जल संधि (IWT) को निलंबित कर दिया है. संधि निलंबित होने के बाद भारत फिलहाल पानी साझा करने की शर्तों से कानूनी रूप से बंधा नहीं है. 1960 की संधि के तहत, भारत ने सिंधु, झेलम और चिनाब (पश्चिमी नदियाँ) का पानी पाकिस्तान के लिए छोड़ने पर सहमति दी थी, जबकि ब्यास, रावी और सतलुज (पूर्वी नदियाँ) का पानी भारत के उपयोग के लिए रखा गया था.

पाकिस्तान के पास सिर्फ 30 दिन का जल भंडारण

रिपोर्ट में कहा गया है कि हालांकि भारत पूरी तरह से पानी रोक नहीं सकता, लेकिन गर्मियों जैसे महत्वपूर्ण समय में बांधों के संचालन में मामूली बदलाव भी पाकिस्तान के घनी आबादी वाले कृषि क्षेत्रों को बुरी तरह प्रभावित कर सकते हैं. सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि पाकिस्तान के पास सिर्फ 30 दिन का पानी स्टोर करने की क्षमता है. इस सीमित भंडारण क्षमता के कारण पाकिस्तान को मौसमी पानी की कमी का बड़ा जोखिम है. पानी के प्रवाह में थोड़े समय के लिए भी रुकावट या बदलाव उसकी कृषि अर्थव्यवस्था को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है.

भारत की रणनीतिक बढ़त और अफ़ग़ानिस्तान का दबाव

रिपोर्ट ने मई में हुई एक घटना का हवाला दिया, जब भारत ने चिनाब नदी पर सालाल और बगलिहार बांधों में जलाशय साफ करने (reservoir flushing) की प्रक्रिया को अंजाम दिया और पाकिस्तान को इसकी जानकारी नहीं दी. इसके परिणामस्वरूप पाकिस्तान में चिनाब नदी के किनारे बाढ़ जैसी स्थिति बन गई. इस घटना ने दर्शाया कि संधि रुकने के बाद नदी प्रबंधन को लेकर भारत के पास अब रणनीतिक बढ़त है. इसके अलावा, पाकिस्तान की मुश्किलें और बढ़ गई हैं क्योंकि अफ़ग़ानिस्तान ने भी कुनार नदी पर बांध बनाने की प्रक्रिया तेज कर दी है, जिससे पाकिस्तान की सीमा पार वाली नदी के पानी तक उसकी पहुंच प्रभावित होगी. पाकिस्तान के किसान पहले से ही जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़ और सूखे जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं.

बांधों के गेट खोलने-बंद करने का अधिकार

रिपोर्ट में कहा गया है कि भले ही भारत की पश्चिमी नदियों पर मौजूद बांध अधिक पानी रोकने वाले (स्टोरेज) नहीं हैं, लेकिन भारत के पास बांध के गेट खोलने-बंद करने और पानी के समय को नियंत्रित करने का अधिकार है. इस अधिकार का उपयोग पाकिस्तान पर दबाव बनाने के लिए किया जा सकता है, जैसा कि चिनाब पर जल निकासी की प्रक्रिया के दौरान देखा गया, जहां पहले नदी का कुछ हिस्सा सूख गया और फिर गाद वाला तेज पानी छोड़ा गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार में भारत ने अपने हिस्से की नदियों (रावी और सतलुज) के पानी का पूरी तरह उपयोग करने की नीति शुरू की है. रावी पर शाहपुरकंडी बांध (2024 में पूरा) और उज्ह बांध जैसे प्रोजेक्ट तेजी से आगे बढ़ाए गए हैं. रिपोर्ट चेतावनी देती है कि भारत-पाकिस्तान रिश्तों में तनाव के कारण यह जल संधि अब सहयोग से विवाद में बदल गई है, जिससे पाकिस्तान का भविष्य खतरे में है.


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