अहमदाबाद न्यूज डेस्क: अहमदाबाद में सामने आई यह कहानी साबित करती है कि खून का रिश्ता ही सब कुछ नहीं होता, बल्कि सच्चे लगाव और अपनापन से भी एक गहरा रिश्ता बन सकता है। 89 वर्षीय गुस्टाद बोरजोरजी इंजीनियर, जो टाटा इंडस्ट्रीज से जुड़े एक प्रतिष्ठित व्यक्ति थे, उन्होंने अपने जीवन के अंतिम वर्षों में एक बच्ची को न सिर्फ बेटी की तरह पाला, बल्कि उसे अपनी संपत्ति का कानूनी उत्तराधिकारी भी बना दिया। 2014 में उनकी मृत्यु से पहले उन्होंने एक वसीयत बनाई थी, जो अब कानूनी रूप से मान्य हो चुकी है।
अमीषा मकवाना की दादी गुस्टाद इंजीनियर के घर खाना बनाने का काम करती थीं। अमीषा बचपन में अक्सर अपनी दादी के साथ वहां जाती थीं, जहां से उनके और इंजीनियर साहब के बीच एक अनोखा रिश्ता पनपने लगा। धीरे-धीरे उन्होंने अमीषा को बेटी की तरह अपनाया और उसकी पढ़ाई-लिखाई की पूरी जिम्मेदारी उठाई। अमीषा बताती हैं कि वे उन्हें ‘ताई’ कहती थीं और उनके लिए वह माता-पिता दोनों के समान थे।
इंजीनियर अमीषा को कानूनी रूप से गोद लेना चाहते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि अमीषा अपने जैविक माता-पिता से कानूनी रूप से अलग हो जाए। उनकी सोच यही थी कि बच्ची दोनों परिवारों का प्यार पा सके। मृत्यु से एक महीने पहले उन्होंने शाहिबाग स्थित अपना 159 वर्ग गज का फ्लैट अमीषा के नाम कर दिया। उस समय अमीषा नाबालिग थीं, इसलिए उन्होंने अपने भतीजे को कानूनी अभिभावक नियुक्त किया।
2023 में अमीषा के बालिग होते ही उन्होंने अदालत में वसीयत के प्रोबेट के लिए आवेदन दिया। कोई आपत्ति न आने पर कोर्ट ने 2 अगस्त 2025 को उन्हें उस घर का अधिकार सौंपने की अनुमति दे दी। आज अमीषा एक निजी कंपनी में एचआर विभाग में काम करती हैं और इंजीनियर साहब के दिए उस प्यार और घर को अपनी सबसे बड़ी पूंजी मानती हैं। वह कहती हैं, “ये सिर्फ एक घर नहीं, उनकी दी हुई सबसे बड़ी निशानी है।”